बंगाल के बर्द्धमान में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत सिर्फ एक भौगोलिक सीमा में बंधा देश नहीं है, बल्कि इसका अपना एक विशिष्ट स्वभाव, संस्कृति और पहचान है। उन्होंने कहा कि भारत हजारों वर्षों से एक जीवंत राष्ट्र के रूप में विद्यमान है, जिसकी आत्मा इसकी सनातन परंपराओं, विचारधाराओं और जीवन मूल्यों में रची-बसी है।
भागवत ने कहा कि भारतीयता किसी जाति, धर्म या भाषा से सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दृष्टि है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि भारत की यह विशेषता उसे अन्य देशों से अलग करती है और यही इसकी आत्मा है।
उन्होंने उपस्थित लोगों से अपील की कि वे भारत के सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं को समझें, उनसे जुड़ें और उनके संरक्षण में योगदान दें। उनका कहना था कि जब तक हम अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे, तब तक भारत एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बना रहेगा।
भागवत के इस वक्तव्य को राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब राष्ट्रवाद, संस्कृति और पहचान जैसे मुद्दे देश में व्यापक चर्चा का विषय बने हुए हैं। उनके भाषण में भारतीय संस्कृति की एकता और विविधता को रेखांकित करते हुए देशवासियों को एकजुट रहने का संदेश भी स्पष्ट रूप से देखने को मिला।