लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में 4 से 6 जुलाई तक आयोजित आम महोत्सव का समापन जिस तहजीब और मिठास के साथ होना चाहिए था, वह अफरातफरी और भगदड़ में बदल गया। महोत्सव के अंतिम दिन पुरस्कार वितरण की सूचना को कुछ लोगों ने ‘आम वितरण’ समझ लिया। इस भ्रम में बड़ी संख्या में लोग थैले, पॉलिथीन और झोले लेकर पहुंच गए।
समापन समारोह के दौरान जब दर्शकों की भीड़ आम के स्टॉलों तक पहुंची, तो वहां मौजूद आमों को लूटने की होड़ मच गई। लोग जिसे जो भी आम हाथ लगा, झट से उठाकर अपने झोलों में भरने लगे। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि आयोजकों को स्टॉल खाली करवाने पड़े।
तीन दिनों तक चले इस महोत्सव में आम की मिठास, उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक छटा और सेलिब्रिटीज की मौजूदगी ने लोगों को आकर्षित किया था। लेकिन अंतिम दिन का दृश्य इस उत्सव की गरिमा के विपरीत रहा। कार्यक्रम की समाप्ति के दौरान जो अव्यवस्था फैली, वह लखनऊ की तहजीब और मेहमाननवाजी की छवि को धूमिल कर गई।
इस घटनाक्रम ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं सूचना के गलत संप्रेषण और लोगों की मानसिकता ने इस तरह के सांस्कृतिक आयोजनों की साख को नुकसान तो नहीं पहुंचाया? आयोजकों को अब भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए बेहतर प्रबंधन और स्पष्ट संवाद पर ध्यान देना होगा, ताकि इस तरह की स्थिति दोबारा न हो।