हर साल सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इसलिए इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सफल वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए जाता है। माना जाता है कि इस उपवास से पति-पत्नी का साथ सात जन्मों तक बना रहता है।
हरियाली तीज प्रेम, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। यह पर्व सावन के महीने में आता है, जब चारों ओर हरियाली छाई रहती है। इसी वजह से इस व्रत में हरे रंग का विशेष महत्व होता है। महिलाएं इस दिन हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं, हरी चूड़ियां पहनती हैं और हाथों में मेहंदी रचाती हैं। हरा रंग प्रकृति, समृद्धि और नवजीवन का प्रतीक माना जाता है। यह रंग सकारात्मकता, खुशहाली और नए आरंभ का संदेश देता है। इसीलिए हरियाली तीज पर हरे रंग को शुभ और फलदायक माना जाता है।
इस पर्व में पारंपरिक गीत, झूला झूलना, लोक नृत्य और मेहंदी की रस्में भी शामिल होती हैं, जो इसे और भी आनंदमय बनाते हैं। हरियाली तीज महिलाओं के सौंदर्य, सज-संवरने और धार्मिक आस्था का सुंदर संगम है।