पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में 17 जून 2024 को कंचनजंघा एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के बीच हुई भीषण टक्कर ने भारतीय रेलवे की सुरक्षा मानकों की गंभीर कमियों को उजागर किया। इस दुर्घटना में कम से कम 10 लोगों की मौत हुई और कई अन्य घायल हुए। रेलवे सुरक्षा आयुक्त की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट ने इस हादसे के पीछे कई महत्वपूर्ण कारणों की ओर इशारा किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, दुर्घटना के दिन सुबह 5:50 बजे से लेकर टक्कर तक, रानीपतरा और छत्तरहाट जंक्शन के बीच स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली पूरी तरह से खराब थी। ऐसी स्थिति में, रेलवे के मानकों के अनुसार, दोनों ट्रेनों को टीए 912 के तहत सभी लाल सिग्नल पार करने की अनुमति दी गई थी। हालांकि, इस प्राधिकरण पत्र में गति सीमा का उल्लेख नहीं था, जिससे चालक को यह स्पष्ट नहीं था कि उन्हें कितनी गति से चलना चाहिए था।
कंचनजंघा एक्सप्रेस के चालक ने निर्धारित मानकों का पालन करते हुए प्रत्येक खराब सिग्नल पर एक मिनट तक रुकने और 10 किमी प्रति घंटे की गति से चलने का प्रयास किया। वहीं, मालगाड़ी के चालक ने इस प्राधिकरण का उल्लंघन करते हुए अधिक गति से ट्रेन चलाई, जिसके परिणामस्वरूप वह कंचनजंघा एक्सप्रेस से टकरा गई।
इसके अतिरिक्त, न्यू जलपाईगुड़ी रेल मंडल के परिचालन विभाग की ओर से भी लापरवाही सामने आई। स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली की विफलता के बावजूद, पूरे सेक्शन को ‘एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम’ में परिवर्तित नहीं किया गया, जिससे एक समय में केवल एक ट्रेन को अनुमति मिलती। इससे यह स्पष्ट होता है कि सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई, जिससे यह दुर्घटना हुई।
इस हादसे ने रेलवे की सुरक्षा प्रणालियों की गंभीर खामियों को उजागर किया है। रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि स्वचालित ट्रेन-सुरक्षा प्रणाली (कवच) को प्राथमिकता के आधार पर लागू किया जाए, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके।