सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को जारी रखने की अनुमति दी है। अदालत ने इसे चुनाव आयोग की एक संवैधानिक जिम्मेदारी बताया है और कहा कि यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अहम हिस्सा है, जिसे रोका नहीं जा सकता।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के सामने आया। अदालत ने मतदाता सूची के संशोधन की टाइमिंग पर सवाल जरूर उठाए, लेकिन इसे पूरी तरह रोकने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने की मांग नहीं की है।
अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि बिहार में SIR के दौरान पहचान के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को स्वीकार किया जाए, ताकि अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इससे उन लोगों को भी लाभ मिलेगा जिनके पास सिर्फ एक या दो दस्तावेज हैं।
यह मामला उस समय सामने आया है जब बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं और विभिन्न विपक्षी दलों ने मतदाता सूची की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग से 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय की गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनावी प्रक्रिया को समय पर पूरा करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।