संसद का मानसून सत्र हाल ही में संपन्न हुआ, लेकिन यह सत्र अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका। सरकार ने इस सत्र में लोकसभा की कार्यवाही के लिए कुल 120 घंटे का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन हंगामे और लगातार व्यवधानों के चलते चर्चा मात्र 37 घंटे ही हो पाई। इसी प्रकार, राज्यसभा में भी कामकाज उम्मीद से काफी कम हुआ।
हालांकि कम समय की चर्चा के बावजूद, संसद ने कई विधेयकों को पारित किया। लोकसभा में कुल 12 और राज्यसभा में 14 विधेयक पारित किए गए। इनमें कुछ महत्वपूर्ण बिल शामिल हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव लाने की दिशा में सरकार की कोशिशों को दर्शाते हैं। लेकिन विपक्ष का आरोप रहा कि इन विधेयकों पर पर्याप्त चर्चा नहीं हुई और इन्हें जल्दबाज़ी में पारित किया गया।
इस सत्र के दौरान विपक्ष की ओर से सरकार पर कई मुद्दों को लेकर सवाल उठाए गए, जिनमें मणिपुर हिंसा, महंगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। वहीं, सत्ता पक्ष का ध्यान विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने पर केंद्रित रहा।
विशेषज्ञों और संसदीय जानकारों का मानना है कि संसद में चर्चा का कम होना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए चिंता का विषय है। संसद का मूल उद्देश्य जनहित के मुद्दों पर बहस करना और व्यापक चर्चा के माध्यम से नीति निर्धारण करना होता है। ऐसे में संसद का कामकाज बाधित होना, और बिना बहस के विधेयकों का पारित होना लोकतंत्र की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है।