सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों के भीतर पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाए और उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर नहीं छोड़ा जाए। यह आदेश दिल्ली सरकार, एमसीडी और एनडीएमसी को दिया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ दिल्ली में विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है|

दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को इंडिया गेट पर प्रदर्शन कर रहे करीब 40-50 पशु अधिकार समर्थकों और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। इस पर सामाजिक संगठन, पशु प्रेमी और पेटा ने भी अपनी नाराजगी जताई है| इस पर पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने कहा आवारा कुत्तों को हटाना और उन्हें “जेल जैसी जगहों” में रखना न तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही है और न ही व्यावहारिक। साथ ही, इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों के लिए आश्रय स्थल तैयार करना भी व्यावहारिक रूप से कठिन है। साथ ही पेटा इंडिया की पशु चिकित्सा मामलों की वरिष्ठ निदेशक डॉ. मिनी अरविंदन बोली, “समुदाय पड़ोस के कुत्तों को परिवार मानते हैं, और कुत्तों को विस्थापित करना और जेल में डालना वैज्ञानिक नहीं है और कभी कारगर भी नहीं रहा है। 2022-23 में किए गए एक जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में लगभग 10 लाख सामुदायिक कुत्ते हैं, जिनमें से आधे से भी कम की नसबंदी की गई है। दिल्ली की सड़कों से लगभग 10 लाख सामुदायिक कुत्तों को जबरन हटाने से उन समुदायों में खलबली मच जाएगी जो उनकी बहुत परवाह करते हैं और कुत्तों के लिए बड़े पैमाने पर अराजकता और पीड़ा का कारण बनेंगे|”
वे आगे बोली “इससे अंततः कुत्तों की आबादी पर अंकुश लगाने, रेबीज़ को कम करने या कुत्तों के काटने की घटनाओं को रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि पर्याप्त संख्या में कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाना अव्यावहारिक है, और कुत्तों को विस्थापित करने से ज़मीन को लेकर झगड़े और भुखमरी जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं।”
इस पूरे विवाद पर मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को “गुस्से में किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया अजीब फैसला” बताया।