मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के साले और सलफी जमीयत के नेता शेख अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद इब्राहिम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “आतंकवादी” और “इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन” तक कह डाला। उन्होंने उन पर बाबरी मस्जिद गिराने का आरोप लगाया और अहमदाबाद को कब्रिस्तान तक बताने वाले तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया, जो उनके डिलीट किए गए सोशल मीडिया पोस्ट से सम्भावित रूप से सामने आया है ।
यह विवाद तब उभरा जब मोदी 25–26 जुलाई 2025 को मालदीव का दौरा करने वाले हैं और 26 जुलाई को वहां स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे । हालांकि इस मामले पर मालदीव सरकार ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन सोशल मीडिया पर बढ़े बवाल के बाद अब्दुल्लाह ने अपनी टिप्पणी हटा दी ।
यह विवाद उस समय सामने आया जब भारत–मालदीव के बीच पहले भी राजनीतिक तनाव देखने को मिल चुके हैं, खासकर जनवरी 2024 में तीन मालदीव के उपमंत्री—माल्शा शरीफ, मरियम शियुना, और अब्दुल्ला महज़ूम माजिद—नरेंद्र मोदी के बारे में “क्लाउन”, “आतंकवादी” और “इज़राइल का कठपुतली” जैसे शब्दों का प्रयोग कर चुके थे। इसके बाद उन्हें निलंबित किया गया था, और दोनों देशों ने कड़ी कूटनीतिक बात की थी । उस समय भारत में “बॉयकॉट मालदीव” ट्रेंड हुआ और पर्यटन संख्या में गिरावट दर्ज हुई थी।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अब्दुल्लाह की टिप्पणी न केवल व्यक्तिगत रूप से आपत्तिजनक मानी जाएगी, बल्कि यह द्विपक्षीय संबंधों पर एक और तनावग्रस्त सबूत हो सकती है। मालदीव के सत्ताधारी नेताओं में पहले भी भारत विरोधी रुख देखा गया है—खासकर तब जब राष्ट्रपति मुइज्जू का झुकाव चीन की ओर देखा गया था । हालांकि जनवरी के विवाद के बाद संबंधों में कुछ नॉर्मलाइज़ेशन हुआ, लेकिन इस तरह की टिप्पणियाँ नए तनाव का कारण बन सकती हैं।
संक्षेप में, यह वह समय है जब भारत-मालदीव के बीच कूटनीतिक तापमान दोबारा बढ़ रहा है, और मोदी के द्विपक्षीय दौरे की पृष्ठभूमि में यह टिप्पणी और भी अहम बन जाती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मालदीव सरकार या राष्ट्रपति कार्यालय इस पर क्या प्रतिक्रिया देगा, एवं यह घटना भारत-मालदीव संबंधों को कैसे प्रभावित करेगी।