कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने हाल ही में संसद में चल रही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहस के दौरान अपनी ही पार्टी को निशाने पर लिया। उन्होंने यह नाराज़गी इस बात को लेकर जताई कि उन्हें पार्टी की ओर से बोलने का मौका नहीं दिया गया। मनीष तिवारी, जो चंडीगढ़ से सांसद हैं, इस मुद्दे को लेकर खासे मुखर रहे हैं और उनकी नाराजगी पार्टी के अंदर गहरे मतभेदों की ओर इशारा करती है।
तिवारी और कांग्रेस नेता शशि थरूर कुछ समय पहले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष रखने के लिए विदेश दौरे पर गए थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने विभिन्न देशों में भारत के रुख को स्पष्ट किया और राष्ट्रीय हितों की रक्षा की। विदेश दौरे से लौटने के बाद दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी की थी, जिससे राजनीतिक हलकों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं।
अब संसद में जब इस ऑपरेशन पर बहस चल रही है, तब मनीष तिवारी को बोलने से रोका जाना न केवल एक आंतरिक पार्टी असहमति को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कांग्रेस के भीतर नीतिगत और रणनीतिक निर्णयों को लेकर एकरूपता नहीं है।
तिवारी की इस नाराजगी ने कांग्रेस के भीतर संवाद और पारदर्शिता की कमी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही, यह घटना इस ओर भी संकेत करती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर पार्टी लाइन से अलग सोच रखने वालों के लिए कांग्रेस में कितनी जगह है, यह अब बहस का विषय बन गया है।