जरा सोचिए, आप अपने किसी दोस्त से casually बात कर रहे हैं – जैसे कि नया एसी खरीदने की, फ्रिज देखने की या किसी ब्रांडेड कपड़े की चर्चा हो रही है। बातचीत बस यूं ही हो रही है, न आपने कुछ गूगल पर सर्च किया, न किसी वेबसाइट पर गए, फिर कुछ ही देर में आपके फोन की स्क्रीन पर उन्हीं चीज़ों के विज्ञापन दिखने लगते हैं। ऐसे में मन में सवाल उठता है – क्या हमारा स्मार्टफोन हमारी बातें सुन रहा है?
असल में यह सिर्फ एक संयोग नहीं होता। टेक्नोलॉजी और मार्केटिंग की दुनिया में माइक्रोफोन एक्सेस और डेटा ट्रैकिंग एक आम बात होती जा रही है। बहुत सारी ऐप्स, जब आप उन्हें इंस्टॉल करते हैं, तो वे माइक्रोफोन, कैमरा और लोकेशन जैसी परमिशन मांगती हैं। अगर आपने अनजाने में माइक्रोफोन की परमिशन दे दी, तो वह ऐप आपकी बातचीत से जुड़े कीवर्ड सुन सकती है। इसके बाद ये कीवर्ड विज्ञापन कंपनियों को भेजे जा सकते हैं, जो आपको टारगेटेड ऐड्स दिखाती हैं।
हालांकि बड़ी टेक कंपनियां – जैसे कि Google, Apple, Facebook – ये दावा करती हैं कि वे बिना आपकी इजाज़त के आपकी बात नहीं सुनतीं। लेकिन कई साइबर एक्सपर्ट्स मानते हैं कि कुछ थर्ड-पार्टी ऐप्स या मैलवेयर यह कर सकते हैं।
इसका समाधान यह है कि आप अपने फोन की सेटिंग्स में जाकर देखें कि कौन-कौन सी ऐप्स को माइक्रोफोन की परमिशन मिली है। अनावश्यक ऐप्स की परमिशन बंद कर दें और केवल विश्वसनीय ऐप्स को ही ऐसी संवेदनशील एक्सेस दें। जागरूक रहना और अपने डेटा की सुरक्षा करना आज के डिजिटल युग की सबसे बड़ी जरूरत बन चुका है।